लोगों की राय

कविता संग्रह >> जी हाँ लिख रहा हूँ

जी हाँ लिख रहा हूँ

निशान्त

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :168
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8629
आईएसबीएन :9788126722600

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

108 पाठक हैं

कवि निशान्त का कविता-संग्रह

Jee Haan Likh Raha Hoon (Nishant)

व्यक्ति के मन, जीवन की छटपटाहट और असन्तोष कैसे कविता में आकर अभिव्यक्ति के फार्म्स और साहित्य की संस्थाबद्धताओं के विरुद्ध संघर्ष में बदल जाता है, यह देखना हो तो निशान्त की ये कविताएँ पढ़नी चाहिए। यह हाशिए से चलकर केन्द्र तक आए एक रचना-विकल मन का आक्रोश है जो इस संग्रह की, विशेषकर तीन लम्बी कविताओं में अपना आकार पाने, अपनी पहचान को एक रूप देने की अथक और अबाध कोशिश कर रहा है।

नाभिक से फूटकर वृत्त की परिधि रेखा की तरफ ताबड़तोड़ बढ़ता यह विस्फोट हर उस दीवार, मठ और शक्ति-केन्द्र को ध्वस्त करना चाहता है जो एक उगते हुए अंकुर के विकास को लगभग अपना कर्त्तव्य मानकर बाधित करना चाहते हैं। एक तरह से यह बीसवीं सदी के आखिरी दशक में उभरी प्रतिरोध की वह युवा-मुद्रा है जिसे अपना हर रास्ता या तो अवरुद्ध मिला या फिर बेहद चुनौतीपूर्ण। समाज में बाजार अपनी चकाचौंध के साथ पसरा हुआ था और भाषा में संवेदना, परदुख और सरोकार आदि शब्दों के बड़े व्यापारी अपनी उतनी ही चमकीली दुकानें फैलाए बैठे थे !

इस संग्रह में शामिल तीनों लम्बी कविताएँ- ‘कबूलनामा’, ‘मैं में हम, हम में मैं’ और ‘फिलहाल साँप कविता’-इन सब आक्रान्ता बाजारों-दुकानों के पिछवाड़े टँगे खाली कनस्तरों को पीटने और पीटते ही चले जाने का उपक्रम है। उम्मीद है यह कर्ण-कटु ध्वनि आपको रास आएगी।

साथ में हैं ‘कोलकाता’ और विभिन्न चित्रकारों की चित्रकृतियों पर केन्द्रित दो कविता-श्रृंखलाएँ जिनमें निशान्त का कवि अपनी काव्य-भूमि को नई दिशामों में बढ़ाते हुए अपने पाठक को अनुभूति की अपेक्षाकृत दूसरी दुनिया में ले जाता है।


प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai